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नन्हीं बच्ची-सी धूप / सुरेश यादव

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छज्जे पर बैठी
पाँव हिलाती
नन्हीं बच्ची-सी धूप
आँगन में उतरने को बहुत मचलती
सूरज से दिनभर झगरती
शाम होते-होते
हाथ झटक
बेचारी को उठा लेता
रोज निर्दयी सूरज
और धूप अनमनी होकर
हर शाम
उठ कर चली जाती है
शाम धीरे-धीरे गहराती है जैसे
बच्ची रोते-रोते सो जाती है.