भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे तो वही रूप है प्यारा / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:43, 20 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मुझे तो वही रूप है प्यारा
जब रथचक्र उठा तुमने कौरव-दल को ललकारा
 
मन तो राधा को अर्पित था
सखा-भाव अर्जुन के हित था
पर जो कालरूप घोषित था
दिखा उसीके द्वारा
 
शिव थे तब समाधि से जागे
विधि सभीत आये थे भागे
भीष्म झुके थे धनु रख आगे
करते स्तवन तुम्हारा
 
आन भुला अपनी, गिरधारी!
दिया भक्त को गौरव भारी
करना, प्रभु! मेरी भी बारी
वैसी कृपा दुबारा

मुझे तो वही रूप है प्यारा
जब रथचक्र उठा तुमने कौरव-दल को ललकारा