कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार
जब यह दीपक बुझ जायेगा
कहाँ प्रकाश शरण पायेगा!
किस अनंत में मँडरायेगा
चेतन खो आधार!
सभी ज्ञान, विज्ञान, बुद्धिबल
तन के साथ न जायेंगे जल!
यदि चित् महाचेतना से कल
हो ले एकाकार!
जड़ता से जब चलूँ विदा ले
चेतन भी यदि साथ छुड़ा ले
निज को किसके करूँ हवाले
खोल शून्य का द्वार!
कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार