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मान भी लूँ / नंदकिशोर आचार्य

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मान भी लूँ
कि पाप ने मुझे ही डँसा
तो तुम्हें क्या हो गया था
जब वह मेरी ओर आ रहा था ?

मुझे तब ही समझ लेना था
कि तुम क्रूर और घमण्डी हो
और डरपोक भी।
मुझ निरीह से
तुम्हें भला क्या भय था ?

तुम्हारे सब से प्यारे पुत्र का रक्त
जब मुझ पर
छिड़का जाता है
तो कौन होता है पवित्र
मैं ? पाप ? या स्वंय तुम ?

तुम तो पिता हो न !
सच-सच कहो
कैसा लगता है तुम्हें
जब यीशु का रक्त
बूँद-बूँद टपकता है
और तुम्हारा चेहरा और हाथ
अपने ही बेटे के खून से
भीग जाते है !
(1968)