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अमरीका / विजय गुप्त

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दीवारें,
दिमाग़ में
उतर आईं,
दिल को,
दरवाज़ों ने
बंद किया,
छिपकलियाँ
दौड़ने लगीं
रगों में,
भर गए
आँखों में,
मकडि़यों के जाले

ख़बरें घिर चुकी थीं
विज्ञापनों से,
न्यूज़-चैनल पर
दिखा रहा था
छुपा हुआ कैमरा
नंगी की जा रही औरत को
औरत की निढाल आँखों में
दम तोड़ रहे थे किसान
डूब रहे थे गाँव
उड़ रहे थे
धमाकों से पहाड़
बाज़ार भर चुका था
सौंदर्य-प्रसाधनों, कीटनाशकों और
बीमार बीजों से

घर के भीतर
हर कमरे में
घुस आया था
अमरीका ।