भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राग के आवृत में / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:49, 21 जुलाई 2011 का अवतरण
काली रात के तारों पर
बजती हुई
घनीभूत धुन है तुम्हारी
देह:
मीड़ो-मुरकियों की झूल
में उन्मन
खिंचा जाता हूँ
समाने राग के आवृत में।
मृत्यु से भी अधिक
कैसा दुर्निवार खिंचाव
आह माँ, माँ आह
(1980)