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राग के आवृत में / नंदकिशोर आचार्य

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काली रात के तारों पर
बजती हुई
घनीभूत धुन है तुम्हारी
देह:
मीड़ो-मुरकियों की झूल
में उन्मन
खिंचा जाता हूँ
समाने राग के आवृत में।


मृत्यु से भी अधिक
कैसा दुर्निवार खिंचाव
आह माँ, माँ आह
(1980)