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अब केवल प्रेम / वत्सला पाण्डे
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दुःखों में
डूबती ही गई
उबरने के लिए
पीडा.ओं को
सोख लिया
तीन आचमन में
पच गए हैं
सभी शोक संताप
मैं निःशेष