भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर भी प्रतीक्षा है / वत्सला पाण्डे
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:32, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वत्सला पाण्डे |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>तुम्हें एक दर…)
तुम्हें एक
दरख्त की तरह
सीने से लगाए
खड़ी रही थी
मैं
तुम चलना
नहीं चाहते थे
और मैं रूकना
इसी असमंजस में
कभी चलती रही
कभी थमती रही
मगर कदमों ने
तुम्हारा साथ न दिया
मेरी आंखों में
तुम्हारे पतझड़
के बाद
फिर कुछ न रहा
मगर हरीतिमा
दरवाजे पर
दे जाती है
हर बार एक
दस्तक