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मिनखपणो / जितेन्द्र सोनी
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सलीम !
अब क्यूं नीं मांगै
थारी रुखसाना
भींत उपराकर
म्हारै घरां
तीज-तिंवार
रंधियोड़ी खीर !
क्यूं नीं मन करै
मांग ल्ये
म्हारो रामू
थारी ईद री सिवइयां !
अब क्यूं नीं करै
रामू अर रुखसाना री मां
भींत रै दोन्यूं कानी
ऊभी हुय'र
घरबिद री बातां !
क्यूं म्हारै घर री आरती
अर थारै घर री नमाज
घोळै कानां मांय सीसो !
अब कद कूद'र जावैला
खेलण सारू
रामू अर रुखसाना
अक -दूजै रे घरां !
क्यूं कटग्या सलीम
अब आपां इता
अक - दूजै सूं !
बता सलीम बता ,
आपणै घरां बिचली भींत
मोटी अर ऊँची हुगी
का सलीम अर स्याम रो
मिनखपणो छोटो ?