भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खिड़की / जितेन्द्र सोनी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:41, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जितेन्द्र सोनी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> खिड़की से दि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


खिड़की से दिखता है तुम्हें
इस पार
तुम खुश हो
भूलकर
खिड़की तो होती है
सदा किसी दीवार में
क्या बेहतर नहीं है
खिड़की बनाने
या बड़ा करने में
बहाए गए
सदियों के पसीने को
अगर बहा दिया जाता
दीवार ढहाने में ?