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दर्द और दवा / जितेन्द्र सोनी

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दो मुझे
घाव पर घाव
और बनने दो इन्हें
नासूर
ताकि जन्म हो
लड़ने की इच्छा का
जूझने की तमन्ना का
प्रतिकार की आरजू का
दो जख्म
ताकि टीस दर टीस
दिल के हर हिस्से से
तुम्हें निकाल दूँ
प्यार के भ्रम के बादल
छिटका दूँ
कि बचे नहीं
कहीं कोई सेतु
मेरे तुम्हारे बीच
जो फिर
बीच की दूरियों को पाटकर
मिला दे हमें
इसीलिए कहता हूँ
इन्तहा हो जाने दो
मुझे और चोट दो
ताकि हर बार
और कड़ा कर लूँ
इस दिल को
जख्मों में पड़ते
मवाद के साथ
मर जाए
सारी कोमल तमन्नाएं
और फूट पड़े
सुप्त ज्वालामुखी
हाँ ! बस यही
विकल्प बचा है
अब तो मुझे
जख्म पर जख्म दो
क्योंकि सुना है
दर्द हद से बढ़ जाए
तो दवा बन जाता है