भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जनम जनम / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:12, 22 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> सदियो…)
सदियों से
हम रहते आए हैं।
किसी न किसी में।
सूरत बन कर
या सीरत बन कर...
बाप का बेटा
बेटे का बेटा
और भी
हमारी चाहना
बढ़ती जाती है...
जीने की...
इच्छा मरती नहीं
आजन्म
फिर मोक्ष का
प्रश्न कैसा।