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आईना / जितेन्द्र सोनी

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आईने में देखा तो हैवान नज़र आया
लेकर हर बार इम्तिहान गरीब का खुदा बेईमान नज़र आया
कैसे कहूँ कि जमाने में चली है विषमता की बयार
सफ़ेद खून के इस दौर में दम तोड़ता इंसान नज़र आया


पैसों की भूख है हर तरफ डोलता ईमान नज़र आया
दानी के घर में चोरी का सामान नज़र आया
खुदगर्जी के आलम में बिखरते घरों की क्या कहें
अब तो मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में बँटता भगवान नज़र आया


नीची न रहे मजार अपनी कब्र का पत्थर भी अकड़ा नज़र आया
फूलों के संग रहकर काँटों में भी गुमान नज़र आया
हर तरफ़ हालात हैं अदावत के
साँपों के हिस्से का ज़हर भी इंसान में नज़र आया


शान्ति के नुमाइंदों के दिलों में उठता हिंसा का तूफान नज़र आया
खून लगे हाथों को सम्मान और मेहँदी के लिए फरमान नज़र आया
लुटती द्रौपदी के चारों तरफ सिर्फ दुशासन - दुर्योधन हैं
अरे! यहाँ तो कुबेर भी झोली फैलाकर भीख माँगता नज़र आया