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थरथराता जल / नंदकिशोर आचार्य

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बहती हवा जैसी
नीम गन्ध भीनी
ओढ़ कर सोयी तलैया
चाँदनी झीनी
उचट कर जाग जाती है।
वह बुझा कर प्यास
गाजता है
किनारे पर पसर जाता है
अचंचल।
फड़फड़ाते पेड़ !
दुब की चाँदनी !
थरथराता जल !

(1976)