भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक नए आदमी के लिए / प्रणय प्रियंवद
Kavita Kosh से
योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 30 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रणय प्रियंवद |संग्रह= }} <poem> अभी एक लड़ाई बाकी है…)
अभी एक लड़ाई बाकी है
निजता के विरुद्ध
अभी बाकी है पंखुड़ियों से हटाकर पराग को
कविता में ढालना
अभी बाकी है जंगल के विरुद्ध
एक घर बसाना
उतारना धरती पर चांदनी
पक्षियों का उन्मुक्त कलरव
अभी उतारना बाकी है
पहाड़ की छाती फोड़कर कोई झरना
अभी तक हमारी मां ने
जन्म नहीं दिया हमारे सगे भाई को
वह जो पैदा नहीं हुआ
प्यार करने वाला कोई आदमी
वह बीज रूप में कहीं छिपा है
तय है वह अंकुरायेगा एक दिन
और उठ खड़ा होगा एक नया आदमी
वह हम
या आप भी हो सकते हैं।