भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आना जी आना / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
(हरि भटनागर के लिए)
आओ
आओ दोस्त
जल्दी से आना
मेरे भारत की गंध
अपने साथ लाना
लाना तुम प्रेम, लाना तुम स्नेह
लाना अपने साथ प्रीति का नेह
प्रीति का मेह
आना जी आना
जल्दी से आना
अँखियन की प्यास मेरी बुझाना
मित्र की यह आस ज़रूर निभाना
हरि-दर्शन कराना
आना जी आना
(रचनाकाल : 2002)