भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हारा सपम्मपाट / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:29, 8 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=थम पंछीड़ा.. / हरीश बी० शर…)
लोग बाग पूछै है -
‘जबरो है तूं
कवितावां बणावै है
थारै मन में
इसी बातां कीकर आवै है।
ए सबद नूंवां-नूंवां
तूं कठै सूं लावै है,
अठै तो इसा विचार ही आवै कोनी।
म्हैं सोचूं-
बावळा
आ बात तो तूं जाणै
कै म्हैं कवितावां बणाऊ हूं
कुण किण नैं बणावै है
आ बात तो
म्हारो जीव जाणै है।