भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अणूतो दिखावो / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 8 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=थम पंछीड़ा.. / हरीश बी० शर…)
परदेसी तो कोनीं
जिका अणजाणं हां
देस सूं
देस री दसा सूं
फेर भी
सिरणा चालै
सगळै सरीर में म्हारै
जद ठौड़-ठौड़ कैवतां फिरां हां
का सुणां हां -
म्हारो भारत महान !
न्यूतां देवां हां
पीळा चावळ देवण सूं पैली
चोको मंडावा हां
आंगण पुरावां हां
कै पधारो म्हारै देस।