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आपरो-परायो / हरीश बी० शर्मा
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पीड़ जद अणजाण देवै
सै‘ जावां
आ सोच‘र थ्यावस राखलां ऐकर
कै सलट लेसां
मोड़ा-बेगा, आपला तांईं
पण आपलां री नूण-मिरच
सज्जनां नै कांईं
गैलै नै भी रोवाण देवै है
बाळ देवै है सगळो
........
माटी रै महलां दांईं
हड़हड़ा‘र पड़ ज्यावै
सगळी बातां ।