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सांच / हरीश बी० शर्मा

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अखबारां में
रोज नूंवी-नूंवी
खबरां छपी आवै है
कैवै है आ बात लोग-बाग
म्हनैं तो सौ बातां री
एक बात समझ आवै है
सबदां रो एक ई सांच
सांच लागै
जूनो हुयोड़ो सांच,
मानखै री मिरतु
मिनखपणै रो अजूणो अर
मिनखां री रैवणगत।