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जोड़ें सभी शिराएँ / अवनीश सिंह चौहान

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आवाजें बन
हम धरती की
अम्बर-सा फहराएँ
जीवन दें जल
बनकर मेघा
सागर-सा लहराएँ

टूटे-फूटे
बासन घर के
अपनी व्यथा सुनाएँ
और पड़ोसी
सुन-सुन करके
उन पर नित इठलाएँ

उगा हुआ है
कंटकवन जो
आओ आज जराएँ

आओ हम सब
फूल बनें या
कोयल-सा कुछ गाएँ
भोर किरण का
रूप धरें हम
तम को दूर भगाएँ

बिखरे मोती
चुन-चुन लाएँ
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