मुक़द्दम की पड़ोसन / त्रिलोक महावर
उसने
पंद्रह दिन पहले
कोशिश की थी
वी०आई०पी० काफ़िले के सामने आकर
जान देने की
गाँव के मुकद्दम ने
बचा लिया था फुर्ती से उसे
वैसे तो पैंसठ की होगी
आँखों पर
पुराना चश्मा
झुर्रियों भरा शरीर
कोथली में थोड़ी-सी सुपारी और तम्बाकू
चुनौटी में थोड़ा-सा चूना रखना
उसका शगल था
वह मुकद्दम की पड़ोसन थी
कभी मुकद्दम व उसका पति
गहरे मित्र हुआ करते थे
साठ बीघा ज़मीन
और चार जवान शादी-शुदा लड़कों की
मिल्कियत थी उसके पास
एक दिन झमाझम बारिश में
उफ़न पड़ी बेतवा में
जब बह गए बुढऊ
तो लड़कों ने भी किनारा कर लिया
ज़मीन बॉंट ली आपस में
और छोड़ दिया उसे
असहाय
मुकद्दम की पहल पर उसे मिलने लगे
डेढ़ सौ रूपल्ली हर महीने
पिछले महीने से
मुकद्दम ने भी खड़े कर दिए हैं हाथ
ज़िन्दा लड़के और ज़मीन के रहते
कैसे मिल सकती है इमदाद
आज सुबह
ठंड से अकड़ी पाई गई वह
अपनी झोपड़ी में
उसकी पोटली में
न चावल, न दाल, न आटा
सिर्फ़ एक राशन-कार्ड मिला है तुड़ा-मुड़ा ।