भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द हो तो / कीर्ति चौधरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:01, 13 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कीर्ति चौधरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> दर्द हो तो बँटा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द हो तो बँटाने को लोग तो बहुतेरे ।
ज़रा बोलो तो सही, दूर हो व्यथा जो घेरे ।
लेकिन आख़िर उसे कुछ कहा भी तो जाए-
दौड़-दौड़ ख़ुद ही जो दर्द से करता है फेरे ।