Last modified on 3 अगस्त 2007, at 01:01

फूल की हँसी / स्वप्निल श्रीवास्तव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 3 अगस्त 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव |संग्रह=ईश्वर एक लाठी है }} इस फूल ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


इस फूल को देखिए

जैसे सुबह हँस रहा था ठीक उसी तरह

इस कड़ी धूप में है उसकी हँसी


वह हँसता है तो धूप में भी पड़ सकती है दरार

सूर्य की तेज़ किरणें उसकी आभा को नहीं कर पातीं कम


फूल की हँसी मिट्टी से जुड़ी है

उसकी जड़ें धरती के वात्सल्य से भींगी हैं


कौन कम कर सकत है यह सुर्ख़ हँसी ?

फूल हँसेंगे दिन के अंधेरे

तथा रात के सन्नाटे में

और अपनी ख़ुश्बू निर्मूल्य लुटाएंगे