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बाढ़ / स्वप्निल श्रीवास्तव
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बाढ़ आती है गाँव में
पेड़-पहाड़-घर-मकान-मवेशियों को
बहा ले जाती है, बहुत दूर
भूल जाते हैं लोग कि यहाँ कोई गाँव भी था
पुन: आते हैं लोग
बची-खुची नींव पर अपना घर बनाना शुरू करते हैं
क्योंकि बाढ़ से भी ज़्यादा शक्तिशाली है
मनुष्य की जिजीविषा
ख़तरे के निशान के ऊपर होती है नदी
उसका रूख़ मोड़ दिय जाता है गाँव की तरफ़
जल-प्रलय गाँव को अपनी गिरफ़्त में समेटने लगता है
नदी गाँव की शुभचिन्तक नहीं है
गाँव तबाह होते रहते हैं
घुटनों-भर पानी भर आता है
फिर सिर तक
और डूब जाता है पूरा गाँव
तमाशबीन हैलीकाप्टर
आदमख़ोर पक्षी की तरह
गाँव के सिर पर मंडराता रहता है