Last modified on 24 अगस्त 2011, at 14:30

बरवै रामायण / तुलसीदास/ पृष्ठ 5

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:30, 24 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे= ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

( बरवै रामायण बालकाण्ड/पृष्ठ-4)

( पद 16 से 19तक)

नृप निरास भए निरखत नगर उदास ।
धनुष तोरि हरि सब कर हरेउ हरास।16।

का घूँघट मुख मूदहु नवला नारि।
चाँद सरग पर सोहत यहि अनुहारि।17।

गरब करहु रघुनंदन जनि मन माहँ।
देखहु आपनि मूरति सि कै छाहँ।18।

 उठीं सखीं हँसि मिस करि कहि मृदु बैन।
 सिय रघुबर के भए उनीदे नैन।19।

(इति बरवै रामायण बालकाण्ड)

अगला भाग >>