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बरवै रामायण / तुलसीदास/ पृष्ठ 5

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( बरवै रामायण बालकाण्ड/पृष्ठ-4)

( पद 16 से 19तक)

नृप निरास भए निरखत नगर उदास ।
धनुष तोरि हरि सब कर हरेउ हरास।16।

का घूँघट मुख मूदहु नवला नारि।
चाँद सरग पर सोहत यहि अनुहारि।17।

गरब करहु रघुनंदन जनि मन माहँ।
देखहु आपनि मूरति सि कै छाहँ।18।

 उठीं सखीं हँसि मिस करि कहि मृदु बैन।
 सिय रघुबर के भए उनीदे नैन।19।

(इति बरवै रामायण बालकाण्ड)

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