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घर / स्वप्निल श्रीवास्तव
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मैं दुर्घटनाग्रस्त हो गया
देखते-देखते सरपट भाग गया ट्रक
जैसे भाग जाते हैं हत्यारे
हत्या के बाद
मुझे उस दैत्यकार ट्रक की याद है जो रौंद सकता है
मेरा घर
लेकिन उसने सिर्फ़ मुझे आहत किया
शुक्र है बच गया मेरा घर
घर के साथ बच गईं
घर से जुड़ी यादें
मैं अपना घर कहाँ बनाऊँ
जहाँ न आ सकें हमलावर
शीशे की तरह नाज़ुक
घर को पथराव से बचाते हुए
लहूलुहान हो गई है पीठ
इस पीठ पर बसा हुआ है शहर
यह शहर मेरा शहर नहीं है
जैसे कि यह घर
जो बरसों से मेरे साथ
रहते हुए भी नहीं है सुरक्षित