भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरठ-3 / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:34, 9 अगस्त 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव |संग्रह=ताख़ पर दियासलाई }} सुबह ...)
सुबह से रो रही है चिड़िया
एक और चिड़िया
बाज ने उजाड़ दिया है
उसका घोंसला
कुछ बच्चों को चीथ डाला है
कुछ सहमे हुए दरख़्तों पर बैठे हैं
उन पर बन्दूक की आँख
लगी हुई है
मैं उस चिड़िया को बचाना
चाहता हूँ
कितना अच्छा हो मेरा घर
बन जाए उसका घोंसला