भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लुप्त हों न पलाश / नवीन सी. चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
Navincchaturvedi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 30 अगस्त 2011 का अवतरण
लुप्त हों न पलाश
बिन तुम्हारे होलिका त्यौहार
था इक कल्पना भर
हाट में बाक़ायदा
तुम स्थान पाते थे बराबर
अब कहाँ वो रंग
वो रंगीन भू-आकाश
लुप्त हों न पलाश
'मख-अगन' सा दृष्टिगोचर
है तुम्हारा यह कलेवर
पर तुम्हारे पात नर ने
वार डाले बीडियों पर
गाँव तो सब जानते हैं
नगर समझें काश
लुप्त हों न पलाश