भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तस्लीमा नसरीन : चार / अग्निशेखर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:12, 30 अगस्त 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे हम कर चुके हों जीते जी
अपना क्रिया-कर्म
और अब मृत्युंजय नागरिक हैं
जैसे हम आए हों कुछ दिनों के लिए
अपने ही देश में सैलानियाँ कि तरह
और हमें किसी से क्या लेना देना
जैसे हमने युद्ध में डाल दिए हों
हथियार
और अब हो जो हो निर्विरोध

तुम भी नहीं जानती थीं मेरी तरह
इस देश के बारे में
अपने वतन से भागते हुए
हथेलियों में जान लिए