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भीड़ नहीं ये आँखें हैं / शारिक़ कैफ़ी

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भीड़ नहीं ये आँखें हैं
और इन आँखों में
किसी के चश्मे का नंबर बढ़ जाता है तो
मजबूरी है मेरी रिश्ते रखना
कुछ अच्छी आँखों से
गर्म हाथों से
मेरा होना ही तब साबित होता है जब
कोई मुझको देखे
मुझको हाथ लगाए
भीड़ नहीं ये वो आँखें हैं
जिन से हूँ मैं