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बे-शिनाक्त / सजीव सारथी

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सुबह गश्त पर निकले, हवालदार को,
जैसे आवाज़ देकर बुलाया था-
प्लेटफोर्म नम्बर ६ पर पड़ी उस लाश ने,
दो तीन बार,
डंडा और लात मार,
टटोलने पर भी जब
खामोश रही- लाश,
तो अम्बुलेंस बुला ली गयी,
शिनाख़्त के लिए
तस्वीरें ली गयी,
कद ५ फीट ७ इंच,
सामान्य काठी, गेहुंवा रंग,
जर्द चेहरा, धंसी ऑंखें,
रूखे सूखे बाल,
पेट पर चीरे का निशान,
नीली शर्ट, काली पैंट, पहने -
जाने कितनी आँखों से होकर गुजरा,
अखबार का वह कोना-
आईने की तरह,
पर कोई न मिला,
उस भरे शहर में,
उस चेहरे की पहचान वाला,
दो दिन बाद
लाश को भेज दिया गया,
विधुत शव-ग्रह में,
पोस्ट मार्टम रिपोर्ट कहती है, कि -
किडनी की नाकामी,
मौत का कारण बनी,
मृतक बस एक किडनी पर ही जिंदा था,
दूसरी शायद पहले ही....

मृतक की जेब से,
उस रात गई,
मगध एक्सप्रेस का टिकट मिला,
और मिला एक मैला सा पुर्जा,
जिसमे लिखा था-
"बछुवा वो डाक्टर सचमुच देवता है,
जिसने तोहार मुफ़त म अपरेसन किया,
वरना आज कल कौन गरीबा की सुने है,
उस डाक्टर साब को
अपने बाबूजी का असिर्वाद देना.
तुम ठीक हो न ? कब लौटे हो घर ?..."

जब शहर के लोग
फंसे होते हैं ट्रैफिक में,
रमे होते हैं सास बहु के किस्सों में,
घूम रहे होते हैं बाजारों में,
या फिर थिरक रहे होते हैं डिस्को में,
जाने कितने बाबूजी के "बछ्वों" को,
जो कभी लौट नही पाते घरों को,
निगल जाता है, चुप चाप....
शहर का काला अघोरी अँधेरा-

और किसी को कानों कान
ख़बर भी नही लगती...