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बिजली की आवारागर्दी / रमेश तैलंग

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देखो तो बिजली की आवारागर्दी
जब चाहा आई
जब चाहा चल दी ।

पापा की दाढ़ी
आधी बनी रह गई
जाते-जाते बिजली
कुछ भी न कह गई
आए या न आए
अब उसकी मरज़ी ।

बड़े शौक से घर में
लाए थे ’गीज़र’
सोचा था, कुछ दिन
सुख भोगेंगे जी-भर

पर उसने तो हालत
पतली ही कर दी ।