Last modified on 17 अगस्त 2007, at 23:27

करती है पानी -पानी / रमा द्विवेदी

Ramadwivedi (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:27, 17 अगस्त 2007 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मर्यादाएं न टूटें,इतना भी त्रास न दो।
कोई नारी बने अम्बिका इतना भी उपहास न दो॥

एक बार भीष्म ने नारी अधिकार का हरण किया था।
वह नारी तब बनी शिखण्डी,अरु अपना प्रतिशोध लिया था॥

इसलिए कभी ऐसा मत करना,कि कर न सको प्रायश्चित भी।
अंजाम भोगना पड़ता है,हर कुकृत्य का निश्चित ही॥

कोमलता को कमजोर समझना यह है तेरी नादानी।
आती है बाढ़ नदी में जब जग को करती है पानी-पानी॥

दुष्टों ने उत्पात मचाया,फिर भी धरती थमी रही है।
जब-जब धरती हुई प्रकंपित,सृष्टि में खलबली मची है॥