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सांवली रात / अरुण शीतांश
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सुबह की पहली किरण
पपनी पर पड़ती गई
और मैं सुंदर होता गया
शाम की अंतिम किरण
अंतस पर गिरती गई
और मैं हरा होता रहा
रात की रौशनी
पूरे बदन पर लिपटती गई
और मैं सांवला होता गया