भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लम्स तुम्हारा / सजीव सारथी

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:20, 7 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सजीव सारथी |संग्रह=एक पल की उम्र लेकर / सजीव सार…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस एक लम्हें में,
जिसे मिलता है लम्स तुम्हारा,
दुनिया संवर जाती है
मेरे आस पास,
धूप छूकर गुजरती है किनारों से,
और जिस्म भर जाता है,
एक सुरीला उजास,
बादल सर पर छाँव बन कर आता है,
और नदी धो जाती है,
पैरों का गर्द सारा,
हवा उडा ले जाती है,
पैरहन और कर जाती है मुझे बेपर्दा,

खरे सोने सा, जैसा गया था रचा,
उस एक लम्हें में,
जिसे मिलता है लम्स तुम्हारा,
कितना कुछ बदल जाता है,
मेरे आस पास....