भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूल चूक/ सजीव सारथी

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:36, 7 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सजीव सारथी |संग्रह=एक पल की उम्र लेकर / सजीव सार…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर से जो नज़र आता है आब शायद,
डर है निकले न कहीं ये भी सराब शायद...

आँख खुल जाए तो औंधे मुंह पड़े मिलते हैं,
आदतन नींद में चलते हैं मेरे ख्वाब शायद.

कल मैंने दर बदर देखा था उसके बच्चों को,
पी गयी क्या एक घर और ये शराब शायद.

कोई अल्लाह तो कोई राम रट कर कटा है,
चौक पर रुसवा हुई फिर कोई किताब शायद.

लौट कर आया है वो शख्स जो दर से क़ज़ा के,
काम उसके आ गया होगा कोई सवाब शायद

बुतों में फूंक कर वो जाँ, लिखता होगा उन पर,
भूल चूक लेनी देनी मुआफ है हिसाब शायद...