भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नोटिस / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:56, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रोशनी का एक तार
अंदर उतार कर देखा
झनझनाट हुई
सिहरना कहा जा सकता है
मेरे इस अंदाज को
किसी ने नहीं माना
चाहता था नोटिस लिया जाए
भोगा जो, देखा जाए।
महसूस करें।
अपने अंदर रोशनी करने की प्रक्रिया को।
मशक्कत थी-नाकामयाब रही
कि मैं अपने अंदर
काफी देर तक रखे रहा रोशनी का तार
कोई देखेगा
इस इतंजार में जलाता रहा खून।