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चेहरे (3) / हरीश बी० शर्मा
आशिष पुरोहित
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फिर मैं फिर से फिर कर आता
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रेत का सागर
तपते धोरे
सपने सीझे मुंह-अंधेरे
सुबह जगें तो जलते खीरे
पानी बहुत है
गहरे