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उम्र की शाम/ सजीव सारथी
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ये डूबता सूरज,
ये सूखे पत्ते,
मुझे एहसास दिलाते है पल पल,
कि मैं भी
डूब रहा हूँ,
कि मैं भी,
सूख रहा हूँ,
ये झुका बदन, ये सूखापन ,
मुझे अच्छा नही लगता,
ये बुझा मन, ये सूनापन ,
मुझे अच्छा नही लगता ।
खाली खाली कमरे ,
लम्हें बीते गुजरे ,
चश्मे के शीशों से झांकते,
चेहरे की झुर्रीयों से कांपते ,
ये चेहरा, ये दर्पण,
मुझे अच्छा नही लगता,
ये कमरा, ये आंगन,
मुझे अच्छा नही लगत