भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक बार फिर/ सजीव सारथी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सजीव सारथी |संग्रह=एक पल की उम्र लेकर / सजीव सार…)
वापिस मुडा हूँ एक बार फिर,
अपने कूचे की तरफ़,
वो गली जो मेरे घर तक जाती थी,
फिर से मिल गयी है,
वो राह जो मेरे दर तक पहुँचती थी,
साफ़ दिखाई पड़ रही है,
एक बार फिर,
छूकर महसूस करने दो मुझे,
मिट्टी से बनी इन दीवारों को,
बरसते आबशारों को,
चंचल बयारों को,
खोल दो इन दरीचों को,
ताकि एक बार फिर,
गुलाबी धूप,
छू सके मुझे आकर,
इन सब्ज झरोखों से.....