भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मचान/ सजीव सारथी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सजीव सारथी |संग्रह=एक पल की उम्र लेकर / सजीव सार…)
जमीं और आसमां के बीच,
मैंने बाँधा है एक मचान,
बे-दरों-दीवारों का एक छोटा सा मकान
सुबह भीगे पंखों पर आई है आज,
खुशबू मिटटी की हवाएं लायी हैं आज,
महकी महकी सी लगती है,
गर्मी की तपती रातों के बाद आई,
पहली पहली बारिश
अलसता सूरज,
बादलों का लिहाफ हटाकर,
किरण किरण बिखर रहा है,
आसमां पर,
सात रंगों की छतरी सी खुल गयी है,
आज ऐसा क्यों लग रहा है,
जैसे कि मैं बैठा हूँ,
एक बे-दरों-दीवारों के मकान में,
जमीं और आसमां के बीचों बीच,
बांधे हुए मचान में....