भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई अच्छे शेर सुनाता / रोशन लाल 'रौशन'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:44, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोशन लाल 'रौशन' |संग्रह=समय संवाद करना चाहता है / …)
कोई अच्छे शेर सुनाता
मैं भी अपना जी बहलाता
बारिश में फिर कैसे आता
टूट गया है मेरा छाता
सावन तो सूखा ही बीता
भादों तो पानी बरसाता
जिनके सुख-दुख खोटे सिक्के
ऐसों से क्या रिश्ता-नाता
इतनी उलझी-उलझी राहें
किन क़दमों से आता-जाता
साँपों को फिर दूध पिलाया
किस-किस से आख़िर शरमाता
वो देखो जाता है 'रौशन'
शंख फूँकता गाल फुलाता