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आज दखिन पवन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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आज दखिन पवन ।
झूम उठा पूरा वन ।।
बजे नूपुर मधुर दिक‍ ललना के सुर ।
हुआ अंतर भी तो आज रुनझुन ।।
लता माधवी की हाय
आज भाषा भुलाए
रहे पत्ते हिलाए करे वंदन ।।
पंख अपने उड़ाए, चली तितली ये जाए,
देने उत्सव का देखो, निमंत्रण

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल