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चलता है इस तरह (2) / हरीश बी० शर्मा
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मैं दकियानूसी नहीं
खुले विचारों का हूं
मेरी पहली सफाई होती है।
फिर साफ-साफ कह देता हूं
प्यार-व्यार का पता नहीं
हां महिला मित्र ठीक-ठाक बनाई है
फिर मेरा सवाल होता है
तुमने भी बनाए होगें
उसके होठ हां-ना में उलझ जाते हैं
कोई नहीं
लेकिन अब बस, हम दोनों
जैसे मेड फॉर ईच-अदर
सच, उसकी आंखे जरा उठकर पूछती हैं
हां ...., वादा रहा
और फिर कुछ हो गया तो
तो ...तुम्हें जरूर बताऊंगा।