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मेरी सुबह / हरीश बी० शर्मा
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पहली अजान का समय
अब, एक करवट और लेकर
वापस सो जाने में निकल जाता है
सोचता हूं मंदिर की घंटियां भी
नहीं सुनी कई दिनों से
वैसे भी यह सब
‘सुबह हो गई’ बताने वाले
कविताई प्रतीक, आउटडेटेड हो गए हैं
सुबह होने लगी है
दूधवाले की टेर और
अखबार की सर्र से।