Last modified on 9 सितम्बर 2011, at 13:19

जो भी हो / हरीश बी० शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


भाई
वजूद मेरा तो क्या
तुम्हारा भी नहीं
मैं अपने पंख
और तुम अपने
मन के सहारे ही तो हो
जो भी हो
आसमान साफ है
मन निःसंग
जरा
इस भूल-भुलैया में
उम्मीदें जगाओ
मगर सूनो
मैं अपनी पांखों का मखौल नहीं बनाऊंगा।