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जो भी हो / हरीश बी० शर्मा

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भाई
वजूद मेरा तो क्या
तुम्हारा भी नहीं
मैं अपने पंख
और तुम अपने
मन के सहारे ही तो हो
जो भी हो
आसमान साफ है
मन निःसंग
जरा
इस भूल-भुलैया में
उम्मीदें जगाओ
मगर सूनो
मैं अपनी पांखों का मखौल नहीं बनाऊंगा।