Last modified on 9 सितम्बर 2011, at 13:59

दोस्ती (2) / हरीश बी० शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


शायद निभाव हो भी जाता
कुछ रहता, कुछ छूट जाता
आधे से काम चलाते
पूरे का प्रयास होता
‘होता ?’
करता कौन
जब साफगोई फैशन थी
समझौते किसे सुहाते।