भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़कियां (4) / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:28, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लड़कियां
अब जुबान खोलने लगी हैं
दायरे तोड़ने लगी हैं
कुछ बोलने लगी हैं
बहुत-कुछ करना चाहती हैं
सबसे पहले
तलाशना चाहती हैं एक साथी
जताना चाहती हैं
मौलिक प्रेम
लेती हैं फैसला अपने-आप।